Friday, 4 December 2020

बोले हुए शब्द वापस नहीं आते

 हमारी day-today life में कई बार ऐसा होता है कि हम या तो बहुत गुस्से में, झुंझलाकर, या बस यूँ ही कुछ ऐसा कह जाते हैं जो हमें नहीं कहना चाहिए.

आज मैं आपके साथ एक छोटी सी Story share कर रहा हू


बोले हुए शब्द वापस नहीं आते


एक बार एक किसान ने अपने पडोसी को भला बुरा कह दिया, पर जब बाद में उसे अपनी गलती का एहसास हुआ तो वह एक संत के पास गया. उसने संत से अपने शब्द वापस लेने का उपाय पूछा.


संत ने किसान से कहा , ” तुम खूब सारे पंख इकठ्ठा कर लो , और उन्हें शहर  के बीचो-बीच जाकर रख दो .” किसान ने ऐसा ही किया और फिर संत के पास पहुंच गया.


तब संत ने कहा , ” अब जाओ और उन पंखों को इकठ्ठा कर के वापस ले आओ”


किसान वापस गया पर तब  तक सारे पंख हवा से इधर-उधर उड़ चुके थे. और किसान खाली हाथ संत के पास पहुंचा. तब संत ने उससे कहा कि ठीक ऐसा ही तुम्हारे द्वारा कहे गए शब्दों के साथ होता है, तुम आसानी से इन्हें अपने मुख से निकाल तो सकते हो पर चाह कर भी वापस नहीं ले सकते.

इस कहानी से क्या सीख मिलती है:

कुछ कड़वा बोलने से पहले ये याद रखें कि भला-बुरा कहने के बाद कुछ भी कर के अपने शब्द वापस नहीं लिए जा सकते. 

हाँ, आप उस व्यक्ति से जाकर क्षमा ज़रूर मांग सकते हैं, 

और मांगनी भी चाहिए, पर human nature कुछ ऐसा होता है की कुछ भी कर लीजिये इंसान कहीं ना कहीं hurt हो ही जाता है.

जब आप किसी को बुरा कहते हैं तो वह उसे कष्ट पहुंचाने के लिए होता है पर बाद में वो आप ही को अधिक कष्ट देता है. खुद को कष्ट देने से क्या लाभ, इससे अच्छा तो है की चुप रहा जाए.




नफरत और प्रेम

नफरत और प्रेम





एक नफरत है....

जिसको पल भर में महसूस कर लिया जाता है.....



और.....



एक प्रेम है.......



जिसको यकीन दिलाने के लिए सारी जिंदगी भी कम पड़ जाती है!





राधे राधे 




Wednesday, 2 December 2020

अभ्यास का महत्त्व

 💐💐अभ्यास का महत्त्व💐💐


प्राचीन समय में विद्यार्थी गुरुकुल में रहकर ही पढ़ा करते थे। बच्चे को शिक्षा ग्रहण करने के लिए गुरुकुल में भेजा जाता था। 



बच्चे गुरुकुल में गुरु के सानिध्य में आश्रम की देखभाल किया करते थे और अध्ययन भी किया करते थे।

वरदराज को भी सभी की तरह गुरुकुल भेज दिया गया। 




वहां आश्रम में अपने साथियों के साथ घुलने मिलने लगा।

लेकिन वह पढ़ने में बहुत ही कमजोर था। 




गुरुजी की कोई भी बात उसके बहुत कम समझ में आती थी। इस कारण सभी के बीच वह उपहास का कारण बनता है।





उसके सारे साथी अगली कक्षा में चले गए लेकिन वो आगे नहीं बढ़ पाया।

गुरुजी जी ने भी आखिर हार मानकर उसे बोला, “बेटा वरदराज! मैने सारे प्रयास करके देख लिये है। 




अब यही उचित होगा कि तुम यहां अपना समय बर्बाद मत करो। 




अपने घर चले जाओ और घरवालों की काम में मदद करो।”





वरदराज ने भी सोचा कि शायद विद्या मेरी किस्मत में नहीं हैं। और भारी मन से गुरुकुल से घर के लिए निकल गया गया।





दोपहर का समय था। रास्ते में उसे प्यास लगने लगी। 





इधर उधर देखने पर उसने पाया कि थोड़ी दूर पर ही कुछ महिलाएं कुएं से पानी भर रही थी। वह कुवे के पास गया।





वहां पत्थरों पर रस्सी के आने जाने से निशान बने हुए थे,तो उसने महिलाओ से पूछा, “यह निशान आपने कैसे बनाएं।”

तो एक महिला ने जवाब दिया, “बेटे यह निशान हमने नहीं बनाएं। यह तो पानी खींचते समय इस कोमल रस्सी के बार बार आने जाने से ठोस पत्थर पर भी ऐसे निशान बन गए हैं।”

वरदराज सोच में पड़ गया। 





उसने विचार किया कि जब एक कोमल से रस्सी के बार-बार आने जाने से एक ठोस पत्थर पर गहरे निशान बन सकते हैं तो निरंतर अभ्यास से में विद्या ग्रहण क्यों नहीं कर सकता।




वरदराज ढेर सारे उत्साह के साथ वापस गुरुकुल आया और अथक कड़ी मेहनत की। 



गुरुजी ने भी खुश होकर भरपूर सहयोग किया।

कुछ ही सालों बाद यही मंदबुद्धि बालक वरदराज आगे चलकर संस्कृत व्याकरण का महान विद्वान बना। जिसने लघुसिद्धान्‍तकौमुदी, मध्‍यसिद्धान्‍तकौमुदी, सारसिद्धान्‍तकौमुदी, गीर्वाणपदमंजरी की रचना की।




शिक्षा(Moral):

दोस्तो अभ्यास की शक्ति का तो कहना ही क्या हैं। यह आपके हर सपने को पूरा करेगी। अभ्यास बहुत जरूरी है चाहे वो खेल मे हो या पढ़ाई में या किसी ओर चीज़ में। बिना अभ्यास के आप सफल नहीं हो सकते हो।

अगर आप बिना अभ्यास के केवल किस्मत के भरोसे बैठे रहोगे, तो आखिर मैं आपको पछतावे के सिवा और कुछ हाथ नहीं लगेगा। इसलिए अभ्यास के साथ धैर्य, परिश्रम और लगन रखकर आप अपनी मंजिल को पाने के लिए जुट जाएँ !




सदैव प्रसन्न रहिये!!
जो प्राप्त है-पर्याप्त है!!






Monday, 30 November 2020

पिता और बेटी की मजबूरी

     🌹पिता और बेटी की मजबूरी 🌹


निशा काम निपटा कर बेटी ही थी कि फोन की घंटी बजने लगी। मेरठ से विमला चाची का फोन आया था,"बिटिया अपने बाबूजी को आकर ले जाओ यहां से, बीमार रहने लगे हैं, बहुत कमजोर हो गए हैं। हम भी कोई जवान तो हो नहीं रहे हैं, अब उनका करना बहुत मुश्किल होता जा रहा है। वैसे भी आखिरी समय अपने बच्चों के साथ बिताना चाहिए।"

 निशा बोली,"ठीक है चाची जी इस रविवार को आते हैं, बाबूजी को हम दिल्ली ले आएंगे।" फिर इधर उधर की बातें करके फोन काट दिया।

बाबूजी तीन भाई हैं, पुश्तैनी मकान है तीनों वही रहते हैं। निशा और उसका छोटा भाई विवेक दिल्ली में रहते हैं अपने अपने परिवार के साथ। तीन चार साल पहले विवेक को फ्लैट खरीदने के लिए पैसे की आवश्यकता पड़ी तो बाबू जी ने भाइयों से मकान के एक तिहाई हिस्से का पैसा लेकर विवेक को दे दिया था, कुछ खाने पहहने के लिए अपने लायक कुछ पैसा रख दिया। दिल्ली आना नहीं चाहते थे इसलिए एक छोटा सा कमरा रख लिया था जब तक जीवित है तब तक के लिए।

निशा को लगता था कि अम्मा के जाने के बाद बिल्कुल अकेले पड़ गए होंगे बाबूजी लेकिन वहां पुराने परिचितों के बीच उनका मन लगाता था। दोनों चाचिया भी ध्यान रखती थी। दिल्ली में दोनों भाई बहन की गृहस्ती भी मजे से चल रही थी।

रविवार को निशा ओर विवेक का कार्यक्रम बन पाया मेरठ जाने का। निशा के पति अमित एक व्यस्त डॉक्टर है महीने की लाखों की कमाई है उनका इस तरह से छुट्टी लेकर निकलना बहुत मुश्किल है, मरीजों की बीमारी न रविवार देखती है न सोमवार। विवेक की पत्नी रेनू कि अपनी जिंदगी है उच्च वर्गीय परिवारों में उठना बैठना है उसका, इस तरह के छोटे-मोटे पारिवारिक पचड़ों में पडना उसे पसंद नहीं।

 रास्ते भर निशा को लगा विवेक कुछ अनमना , गुमसुम  सा बैठा है। वह बोली,"इतना परेशान मत हो, ऐसी कोई चिंता की बात नहीं है, उम्र हो रही है, थोड़े कमजोर हो गए हैं ठीक हो जाएंगे।"

विवेक जिकंते हुए बोला,"अच्छा खासा चल रहा था, पता नहीं चाचा जी को ऐसी क्या मुसीबत आ गई, दो चार साल और रख लेते तो। अब तो मकानों के दाम आसमान छू रहे हैं, तब कितने कम पैसों में अपने नाम करवा लिया तीसरा हिस्सा।"

निशा शांत करने की मंशा से बोली,"ठीक है ना उस समय जितने भाव थे बाजार में उस हिसाब से दे दिए। और बाबूजी आखरी समय अपने बच्चों के बीच बिताएंगे तो उन्हें अच्छा लगेगा।"

विवेक उत्तेजित हो गया, बोला,"दीदी तेरे लिए यह सब कहना बहुत आसान है, 3 कमरों के फ्लैट में कहां रखूंगा उन्हें। रेनू से किट किट रहेगी सो अलग, उसने तो साफ मना कर दिया है वह बाबूजी का कोई काम नहीं करेगी। वैसे तो दीदी लड़कियां हक मांगने तो बड़ी जल्दी खड़ी हो जाती है, करने के नाम पर क्यों पीछे हट जाती है। आजकल लड़कियों की शिक्षा और शादी के समय अच्छा खासा खर्च हो जाता है । तू क्यों नहीं ले जाती बाबूजी को अपने घर, इतनी बड़ी कोठी है, जीजाजी की लाखो की कमाई है?"निशा को विवेक का इस तरह बोलना ठीक नहीं लगा। पैसे लेते हुए कैसे वादा कर रहा था बाबू जी से," आपको किसी भी वस्तु की आवश्यकता हो तो आप निसंकोच फोन कर देना मैं तुरंत लेकर आ जाऊंगा। बस इस समय हाथ थोड़ा तंग है।"

नाम मात्र पैसे छोड़े थे बाबूजी के पास, और फिर कभी फटका भी नहीं उनकी सुध लेने।


निशा,"तू चिंता मत कर मैं ले जाऊंगी बाबूजी को अपने घर।"सही है उसे क्या परेशानी, इतना बड़ा घर फिर पति रात दिन मरीजों की सेवा करता है, एक पिता तुल्य ससुर को आश्रय दे ही सकते हैं।

बाबूजी को देखकर उसकी आंखें भर आई। इतने दुबले और बेबस दिख रहे थे, गले लगते हुए बोली,"पहले फोन करवा देते पहले लेने आ जाती।"बाबूजी बोले,"तुम्हारी अपनी जिंदगी है क्या परेशान करता। वैसे भी दिल्ली में बिल्कुल तुम लोगों पर आश्रित हो जाऊंगा।"

रात को डॉक्टर साहब बहुत देर से आए, तब तक पिता और बच्चे सो चुके थे। खाना खाने के बाद सकून से बैठते हुए निशा ने डॉक्टर साहब से कहा,"बाबूजी को मैं यहां ले आई हूं, विवेक का घर बहुत छोटा है, उसे उन्हें रखने में थोड़ी परेशानी होती।"अमित के एकदम तेवर बदल गए, वह सख्त लहजे में बोला,"यहां ले आई हूं से क्या मतलब है तुम्हारा? तुम्हारे पिताजी तुम्हारे भाई की जिम्मेदारी है । मैंने बड़ा घर वृद्ध आश्रम खोलने के लिए नहीं लिया था, अपने रहने के लिए लिया है। जायदाद के पैसे हड़पते हुए नहीं सोचा था साले साहब ने की पिता की भी सेवा करनी भी पड़ेगी। रात दिन मेहनत करके पैसा कमाता हूं फालतू लुटाने के लिए नहीं है मेरे पास।"

पति के इस रूप से अनभिज्ञ थी निशा।"रात दिन मरीजों की सेवा करते हो मेरे पिता के लिए क्या आपके घर और दिल में इतना सा स्थान भी नहीं है ।"

अमित के चेहरे की नसे तनी हुई थी, वह लगभग चीखते हुए बोला,"मरीज बीमार पड़ता है पैसा देता है, ठीक होने के लिए, मैं इलाज करता हूं पैसे लेता हूं। यह व्यापारिक समझौता है इसमें सेवा जैसा कुछ नहीं है। यह मेरा काम है मेरी रोजी-रोटी है। बेहतर होगा तुम एक-दो दिन में अपने पिता को विवेक के घर छोड़ आओ।"

निशा को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था, जिस पति की वह इतनी इज्जत करती है वे ऐसा बोल सकते हैं। क्यों उसने अपने भाई और पति पर इतना विश्वास किया? क्यों उसने शुरू से ही एक एक पैसे का हिसाब नहीं रखा? अच्छी खासी नौकरी करती थी पहले पुत्र के  जन्म पर अमित ने यह नौकरी नहीं करने दी और खात में क्या आवश्यकता है तुम्हें किसी चीज की कमी नहीं रहेगी आराम से बेटे की देखभाल करो।

अगर वह नौकरी करके पैसे बचाते तो अपने पिता की सेवा अपने दम पर कर पाती। करने को तो हर महीने उसके नाम के खाते में पैसे जमा होते हैं लेकिन उन्हें खर्च करने की बिना पूछे उसे इजाजत नहीं थी। भाई से भी मन कर रहा था कह दे शादी में जो खर्च हुआ था वह निकाल कर जो बचता है उसका आधा आधा कर दे कम से कम पिता इज्जत के साथ तो जी पाएंगे। पति और भाई दोनों को पंक्ति में खड़ा करके बहुत से सवाल करने का मन कर रहा था, जानती थी जवाब कुछ ना कुछ अवश्य होंगे। लेकिन इन सवाल जवाब में रिश्तो की परते दर परते उखड़ जाएंगे और जो नग्नता सामने आएगी उसके बाद रिश्ते होने मुश्किल हो जाएंगे।अगले दिन अमित के अस्पताल जाने के बाद निशा बाबूजी के पास पहुँची तो हो गए सामान बांधे बेठे थे ।उदासी भरे स्वर मेन बोलें,”मेरे कारण अपनी गृहस्थी मत ख़राब कर । पता नहीं कितने दिन हे मेरे पास कितने नहीं।मेने एक वृद्धाश्रम मे बात कर ली हे जितने पेसे मेरे पास हे,उसमें वे लोग मुझे रखने को तैयार हैं। ये ले पता तू मुझे वहां छोड आ, और निश्चित होकर अपनी गृहस्ती संभाल।"

निशा समझ गई बाबूजी की देह कमजोर हो गई है दिमाग नहीं। दामाद काम पर जाने से पहले मिलने भी नहीं आया साफ बात है ससुर का आना उसे अच्छा नहीं लगा। क्या सफाई देती चुपचाप टैक्सी बुलाकर उनके दिए पते पर उन्हें छोड़ने चल दी। नजर नहीं मिला पा रही थी, ना कुछ बोलते बन रहा था। बाबूजी ने ही उसका हाथ दबाते हुए कहा,"परेशान मत हो बिटिया, परिस्थितियों पर कब हमारा बस चलता है । मैं यहां अपने हम उम्र लोगों के बीच खुश रहूंगा।"


3 दिन हो गए थे बाबूजी को वृद्ध आश्रम छोड़कर आए हुए। निशा का न किसी से बोलने का मन कर रहा था ना कुछ खाने का। फोन करके पूछने की भी हिम्मत नहीं हो रही थी वह कैसे हैं? इतनी ग्लानि हो रही थी कि किस मुंह से पूछे । वृद्ध आश्रम से ही फोन आ गया की बाबूजी अब इस दुनिया में नहीं रहे। 10:00 बज रहे थे बच्चे पिकनिक पर गए थे रात्री 8-9 बजे तक आएंगे, अमित जी तो आते ही 10:00 बजे तक है । किसी की भी  दिनचर्या पर कोई असर नहीं पड़ेगा, किसी को सूचना भी क्या देना। विवेक ऑफिस चला गया होगा बेकार छुट्टी लेनी पड़ेगी।

रास्ते भर अविरल अश्रु धारा बहती रही कहना मुश्किल था पिता के जाने के गम में या अपनी बेबसी पर आखिरी समय पर पिता के लिए कुछ नहीं कर पायी। 3 दिन केवल 3 दिन अमित ने उसके पिता को मान और आश्रय दे दिया होता तो वह हृदय से अमित को परमेश्वर मान लेती।


वृद्ध आश्रम के संचालक महोदय के साथ मिलकर उसने औपचारिकताएं पूर्ण की। वह बोल रहे थे,"इनके बहू, बेटा और दामाद भी है रिकॉर्ड के हिसाब से उनको भी सूचना दे देते तो अच्छा रहता।" वह कुछ संभल चुकी थी बोली,"नहीं इनका कोई नहीं है  न बहू ना बेटा नाही दामाद। बस एक बेटी है वह भी नाम के लिए।"

संचालक महोदय अपनी ही धुन में बोल रहे थे,"परिवार वालों को सांत्वना और बाबू जी की आत्मा को शांति मिले।"

निशा सोच रही थी,"बाबूजी की आत्मा को शांति मिल ही गई होगी । जाने से पहले सब मोह भंग हो गया था। समझ गए होंगे और किसी का नहीं होता, फिर क्यों आत्मा अशांत होगी।"

"हां परमात्मा उसको इतनी शक्ति दे कि किसी तरह व बहन और पत्नी का रिश्ता निभा सके ।"



अगर ये कहानी आपको अच्छी लगे तो अपने दोस्तों और रिश्तेदार तक जरूर शेयर करना!

 धन्यवाद





Sunday, 29 November 2020

अच्छाइयों को देखें बुराइयों को नहीं

 


अच्छाइयों को देखें👁️बुराईयों को नहीं



एक बार की बात है दो दोस्त रेगिस्तान से होकर गुजर रहे थे |  सफ़र के दौरान दोनों के बीच में किसी बात को लेकर कहा सुनी हो गयी.और उनमें से एक दोस्त ने दूसरे के गाल पर थप्पड़ मार दिया | जिसने थप्पड़ खाया था उसे बहुत आघात पहुँचा लेकिन वो चुप रहा और उसने बिना कुछ बोले रेत  पर लिखा – आज मेरे सबसे अच्छे मित्र ने मुझे  थप्पड़ मारा |

उसके बाद उन दोनों ने दुबारा चलना शुरू किया | चलते-चलते उन्हें एक नदी मिली दोनों दोस्त उस नदी में स्नान के लिए उतरे | जिस दोस्त  ने थप्पड़ खाया था उसका पैर फिसला और वो पानी में डूबने लगा , उसे तैरना नहीं आता था | दूसरे मित्र ने जब उसकी चीख सुनी तो वो उसे बचाने की कोशिश करने लगा और उसे निकाल कर बाहर ले आया |

अब डूबने वाले दोस्त ने पत्थर के ऊपर लिखा –आज मेरे सबसे अच्छे मित्र ने मेरी जान बचायी | वो दोस्त जिसने थप्पड़ मारा और जान बचायी उसने दूसरे से पुछा – जब मैंने तुम्हे थप्पड़ मारा तब तुमने रेत पर लिखा और जब मैंने तुम्हारी जान बचायी तब तुमने पत्थर पर लिखा , ऐसा क्यूँ ?

दूसरे दोस्त ने जवाब दिया –- रेत पर इसलिए लिखा ताकि वो जल्दी मिट जाये और पत्थर पर इसलिए लिखा ताकि वो कभी ना मिटे |

मित्रों, जब आपको कोई दुःख पहुँचाता है तब उसका प्रभाव आपके दिलोंदिमाग पर रेत पर लिखे शब्दों की तरह होना चाहिए जिसे क्षमा की हवाएं आसानी से मिटा सकें | लेकिन जब कोई आपके हित में कुछ करता है तब उसे पत्थर पर लिखे शब्दों की तरह याद रखें ताकि वो हमेशा अमिट रहे |

इसलिए किसी भी व्यक्ति की अच्छाई पर ध्यान दें न कि उसकी बुराई पर.





Saturday, 28 November 2020

मित्रता की परिभाषा

                                        💐💐मित्रता की परिभाषा💐💐


एक बेटे के अनेक मित्र थे, जिसका उसे बहुत घमंड था। उसके पिता का एक ही मित्र था, लेकिन था सच्चा।


एक दिन पिता ने बेटे को बोला कि तेरे बहुत सारे दोस्त हैं, उनमें से आज रात तेरे सबसे अच्छे दोस्त की परीक्षा लेते हैं।


बेटा सहर्ष तैयार हो गया। रात को 2 बजे दोनों, बेटे के सबसे घनिष्ठ मित्र के घर पहुंचे। बेटे ने दरवाजा खटखटाया, दरवाजा नहीं खुला, बार-बार दरवाजा ठोकने के बाद दोनों ने सुना कि अंदर से बेटे का दोस्त अपनी माताजी को कह रहा था कि माँ कह दे, मैं घर पर नहीं हूँ। यह सुनकर बेटा उदास हो गया, अतः निराश होकर दोनों घर लौट आए।


फिर पिता ने कहा कि बेटे, आज तुझे मेरे दोस्त से मिलवाता हूँ। दोनों रात के 2 बजे पिता के दोस्त के घर पहुंचे। पिता ने अपने मित्र को आवाज लगाई। उधर से जवाब आया कि ठहरना मित्र, दो मिनट में दरवाजा खोलता हूँ।


जब दरवाजा खुला तो पिता के दोस्त के एक हाथ में रुपये की थैली और दूसरे हाथ में तलवार थी। पिता ने पूछा, यह क्या है मित्र।


तब मित्र बोला... अगर मेरे मित्र ने दो बजे रात्रि को मेरा दरवाजा खटखटाया है, तो जरूर वह मुसीबत में होगा और अक्सर मुसीबत दो प्रकार की होती है, या तो रुपये पैसे की या किसी से विवाद हो गया हो। अगर तुम्हें रुपये की आवश्यकता हो तो ये रुपये की थैली ले जाओ और किसी से झगड़ा हो गया हो तो ये तलवार लेकर मैं तुम्हारें साथ चलता हूँ।


तब पिता की आँखे भर आई और उन्होंने अपने मित्र से कहा कि, मित्र मुझे किसी चीज की जरूरत नहीं, मैं तो बस मेरे बेटे को मित्रता की परिभाषा समझा रहा था। ऐसे मित्र न चुने जो खुदगर्ज हो और आपके काम पड़ने पर बहाने बनाने लगे!


शिक्षा:-

मित्र कम चुनें, लेकिन नेक चुनें.!!



🚩🚩जय श्री राम🚩🚩 

 

सदैव प्रसन्न रहिये!!

जो प्राप्त है-वो पर्याप्त है!!

🙏🙏🙏🙏🙏🌳🌳🙏🙏🙏🙏🙏

Friday, 27 November 2020

ख्वाब

आज एक ख्वाब ने मुझसे पुछा.......





मुझे पूरा करोगे या.......







टूट जाऊं !




वक़्त निकल जाता है

 वक़्त निकल जाता है 


चीजें बदल जाती हैं...
ख़ास लम्हों की बस तारीखें लौट के आती हैं....
लेकिन वो दिन.......
वो दिन वापिस लौटकर नहीं आते....
हम पहले जैसे फिर कभी नहीं हो पाते....
मगर बीते हुए वक़्त के साथ....
कुछ हम भी बीत जाते हैं....
ऊपर से वही दिखते हैं...


मगर अन्दर से काफी बदल जाते हैं!






Wednesday, 25 November 2020

SMALL THOUGHTS

जब किसी में गुण दिखाई दे तो मन को कैमरा बना लीजिये और जब किसी में अवगुण दिखाई दे तो मन को आइना बना लीजिये!

Saturday, 4 July 2020

गुल्लक Piggy Bank


                       गुल्लक [Piggy Bank]                       

दोस्तों आज आपसे बहुत ही जरूरी बात शेयर करना चाहता हूँ! यह जरूरी बात मेरी एक बहुत ही अच्छी आदत से जुडी हुई है ऐसा मेरा मानना है! मेरी पूरी बात सुनने के बाद आप भी मेरी इस अच्छी आदत से इत्तेफ़ाक़ रख पाएंगे! कोरोना के आने के पहले मैंने कई बार सोचा भी था कि आपको मेरी इस आदत के बारे में कुछ जानकारी दूँ लेकिन जब कोरोना जैसी महामारी से हमारा जीवन बुरी तरह से प्रभावित हुआ है तो मुझे लगता है आपको इस बारे में बताने का यही बिलकुल सही समय है! मेरा जीवन भी कोरोना की वजह से प्रभावित हुआ है लेकिन शायद उतना नहीं जितना हो सकता था

हमें एक बात जरूर ध्यान में रखनी चाहिए कि महामारी हर किसी मनुष्य के जीवन काल में नहीं आती और अगर आती भी है तो संभवतया यह हर किसी मनुष्य के जीवन में अधिकतम एक बार ही आती है! यहां मैं यही कहना चाहता हूँ की आज हमारी पीढ़ी के लोगों के जीवन में अब शायद महामारी दुबारा ना आये! मेरे इन शब्दों को दूसरी तरह से आप ये समझ सकते हैं कि मेरी अच्छी आदत अगर आपको भी अच्छी लगे तो उस आदत को अपनाने का यह बिलकुल सही समय है!

अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद जब मैंने अपनी कमाई की शुरुआत की तब पहले दिन से ही प्रतिदिन मैंने एक आदत को अपने जीवन में उतारा और आज तक लगभग 20 साल बाद भी यह आदत कायम है! मैंने मेरे जीवन में पहले मौके पर इस आदत को अपनाया अब प्रकृति ने यह दूसरा मौका दिया है इस आदत को अपनाने का!
हालांकि इस आदत को अपनाने के लिए जरूरी नहीं है की मैंने जो दो मौकों का जिक्र किया है उन मौकों का इंतज़ार किया जाए हम कभी भी अच्छी आदतों को अपना सकते हैं!

हाँ!!! इतना जरूर है कि सही समय पर किया गया सही काम ज्यादा फल देता है! 


इसका मतलब यही है कि आप आप कभी भी अच्छे काम की शुरुआत कर सकते हैं लेकिन सही समय पर की गयी शुभ शुरुआत का लाभ भी बहुत ही आनंददायी होता है! 

हम अपने जीवन में अलग अलग जगह पर निवेश करते हैं जो कि बहुत अच्छी आदत होती है साथ ही साथ हमें एक और काम करना चाहिए जिसके लिए ज्यादा प्रयत्नों की कोई आवश्यकता नहीं होती!

मैंने आज से करीब बीस साल पहले एक इन्वेस्टमेंट की शुरुआत की थी जो आज के इस लॉकडाउन के समय में मेरे लिये बहुत मददगार साबित हुई है! उस इन्वेस्टमेंट को जारी रखने के लिए भी मुझे कोई मेहनत नहीं करनी पड़ी! वो पारम्परिक इन्वेस्टमेंट था.... 

गुल्लक


जी हाँ गुल्लक.... 

मैंने रोज 20 रुपये अपनी गुल्लक में 20 साल तक डाले और उन्हें छुआ भी नहीं! यहां मुझे ब्याज तो कुछ नहीं मिला लेकिन कोरोना के चलते सरकार ने जो लॉकडाऊन लगाया उसकी वजह से मेरा बिज़नेस जो कि बिलकुल बंद हो गया और आज भी चार महीने बीत जाने के बाद भी बंद पड़ा है! इन चार महीनों में मेरे पास कुछ भी काम नहीं है फिर भी दूसरे इंवेस्टमेंट्स को जारी रखते हुए सारे जरूरी घर खर्चों को मैं कर पाया हूँ! ये एक दूरदर्शी सोच का परिणाम है! ये हमारे बुजुर्गों की महान सोच का परिणाम है! 20 रुपये रोज निकल के अलग रखना कोई मुश्किल काम नहीं है न ही इससे हम पर कोई आर्थिक बोझ पड़ता है लेकिन हमारे भविष्य के लिए अच्छी खासी पूँजी जरूर जमा हो जाती है! 

20 गुणा 1 = 20 
20 गुणा 30 = 600 यानि एक महीने के 600 रुपये 
600 गुणा 12 = 7200 यानि एक साल के 7200 रुपये 
7200 गुणा 20 = 144000 यानि 20 साल के 144000 रुपये 
अब हम इन 144000 रुपयों को 6 से भाग दे देते हैं!
144000 भाग 6 = 24000 यानि एक महीने के 24000 रुपये 

मेरे ख़याल से 24000 रुपये किसी 4 से 6 सदस्यों के मध्यमवर्गीय परिवार के एक महीने के खर्च के लिए काफी हो सकते हैं जबकि हमें ये 24000 रुपये जमा करने में विशेष मेहनत नहीं करनी पड़ी थी! अगर हालात गंभीर हो या आने वाले कुछ महीनों तब हमारे व्यवसाय की गाडी पटरी पर आने की कोई गुंजाइश न दिख रही हो तो हमारा ये खर्च 24000 रुपयों के बजाय हम 15 से 20 हजार रुपये प्रति महीने में भी गुजारा कर सकते हैं! इस तरह से हम 144000 को 6 महीनों के बजाय 8 या 9 महीनों तक भी चला सकते हैं! 

ये बचत की ताकत है! 


लम्बे समय तक छोटी छोटी बचत को बनाये रखना हमें कई बार बड़ी बड़ी मुश्किलों से बचा सकता है! 
आप चाहें तो 20 के बजाय 10 रुपये प्रतिदिन भी बचा सकते हैं या फिर अपनी क्षमता के अनुसार 20 या फिर 30 रुपये भी रजाना बचा सकते हैं! जितना ज्यादा आप रोज बचाएंगे उतना अधिक आपको लम्बे समय में फ़ायदा होगा! इसलिए अपने दूसरे निवेश के साथ गुल्लक की आदत भी जरूर डालें!!!

लाइफ में इन्वेस्टमेंट का महत्वपूर्ण स्थान Important place for investment in life.
लाइफ में इन्वेस्टमेंट का महत्वपूर्ण स्थान (भाग 1) Important place of investment in life (Part 1)
लाइफ में इन्वेस्टमेंट का महत्वपूर्ण स्थान भाग 2 Important place of investment in life Part 2






ENGLISH LANGUAGE:-



Gullak [Piggy Bank]
Friends, today I want to share a very important thing with you! This important thing is related to my very good habit, I believe that! After listening to me, you will also be able to agree with this good habit of mine! Before the arrival of Corona, I had thought many times to give you some information about this habit, but when an epidemic like Corona has affected our life badly, I think this is the right time to tell you about it. is! My life has also been affected by Corona but maybe not as much as it could have been!
We must keep one thing in mind that an epidemic does not come in every human's life time and even if it does, then it probably comes at least once in every human's life! Here I want to say that today the epidemic may not come again in the lives of the people of our generation! You can understand my words in the other way that if you like my good habit, then this is the right time to adopt that habit!
After completing my studies, when I started earning, then from the very first day, I started a habit every day in my life and till today after 20 years, this habit is maintained! I adopted this habit for the first time in my life, now nature has given this second chance to adopt this habit!

Although it is not necessary to adopt this habit, wait for those two occasions which I have mentioned, we can adopt good habits anytime!



Yes!!! It is so important that the right thing done at the right time gives more fruit!


This means that you can start a good work at any time, but the benefit of an auspicious start at the right time is also very enjoyable!



We invest in different places in our life, which is a very good habit, as well as we should do another work which does not require much efforts!



I started an investment about twenty years ago, which has proved very helpful for me in today's lockdown time! I did not have to work hard to continue that investment! It was a traditional investment….



Piggy Bank


Yes piggy bank ....



I put 20 rupees in my piggy bank every day for 20 years and did not even touch them! Here, I did not get any interest but due to the lockdown of the government due to Corona, my business which was completely closed and even after four months has remained closed even today! I have no work in these four months, yet by continuing other investments, I have been able to make all the necessary house expenses! This is the result of a visionary thinking! This is the result of the great thinking of our elders! Setting aside 20 rupees a day is not a difficult task nor does it put any financial burden on us, but a lot of capital is definitely accumulated for our future!



20 times 1 = 20

20 x 30 = 600 ie 600 rupees a month

600 x 12 = 7200 i.e. 7200 rupees a year

7200 times 20 = 144000 i.e. Rs 144000 for 20 years

Now we divide these 144000 rupees by 6!

144000 Part 6 = 24000 i.e. 24000 rupees a month



I think 24000 rupees can be enough to spend a month for a middle class family of 4 to 6 members, whereas we did not have to work hard to collect this 24000 rupees! If the situation is serious or there is no scope of our business getting back on track for a few months, then instead of 24000 rupees, we can spend 15 to 20 thousand rupees per month! This way we can run 144000 for 8 or 9 months instead of 6 months!



This is the power of saving!


Keeping small savings for a long time can save us from many great difficulties at times!


If you want, you can save 10 rupees per day instead of 20 or you can save 20 or even 30 rupees according to your capacity! The more you save everyday, the more you will benefit in the long run! So along with your second investment, definitely make a habit of piggy bank !!!


लाइफ में इन्वेस्टमेंट का महत्वपूर्ण स्थान Important place for investment in life.
लाइफ में इन्वेस्टमेंट का महत्वपूर्ण स्थान (भाग 1) Important place of investment in life (Part 1)
लाइफ में इन्वेस्टमेंट का महत्वपूर्ण स्थान भाग 2 Important place of investment in life Part 2